अकेलापन भी कितना अजीब होता है। कोई साथ हो ना हो, पुरानी यादें तो साथ रहती ही हैं। मैं छुट्टियों में गांव में दादा-दादी के पास आ गई थी। वो दोनों मुझे बहुत प्यार करते थे। मेरे आने से उन दोनों का अकेलापन भी दूर हो जाता था। पड़ोसी का जवान लड़का भूरा भी मेरी नींद उड़ाये रखता था। ऐसा नहीं था कि मैंने अपनी जिन्दगी में वो पहला लड़का देखा था। मैंने तो बहुतों के लण्ड का आनन्द पाया था। पर ये भूरा लाल, वो मुझे जरा भी लिफ़्ट नहीं देता था। आज शाम को फ़िजां में थोड़ी ठण्डक हो गई। मैं अपना छोटा सा कुर्ता पहन कर छत पर आ गई। ऊपर ही मैंने ब्रा और चड्डी दोनों उतार दी और एक तरफ़ रख दी। मेरी टांगों के बीच ठण्डी हवा के झोंके टकराने लगे। जैसे ही हवा ने मेरी चूत को सहलाया मुझे आनन्द सा आने लगा। मेरा हाथ स्वतः ही चूत पर आ गया और अपनी बड़ी बड़ी झांटों के मध्य अपनी चूत को सहलाने लगी। कभी कभी जोश में झांटो को खींच भी देती थी। मैंने सतर्कता से यहाँ-वहाँ देखा, शाम के गहरे धुंधलके में आस-पास कोई नहीं था। शाम गहरा गई थी, अंधेरा बढ़ गया था। मैं पास पड़ी प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठ गई और हौले हौले अपनी योनि को सहलाने लगी, मेरा दाना कड़ा होने लगा था। मैंने अपना कुर्ता ऊपर कर लिया था और झांटों को हटा कर चूत खोल कर उसे धीरे धीरे सहला रही थी, दबा रही थी। मेरी आंखें मस्ती से बन्द हो रही थी। अचानक भूरा आया और मेरी टांगों के पास बैठ गया। उसने मेरे दोनों हाथ हटाये और अपने दोनों हाथों की अंगुलियों से मेरी चूत के पट खोल दिये। मुझे एक मीठी सी झुरझुरी आ गई। उसकी लम्बी जीभ ने मेरी चूत को नीचे से ऊपर तक चाट लिया। फिर मेरी झांटें खींच कर अपने मुख को योनि द्वार से चिपका लिया। मेरी जांघों में कंपकंपी सी आने लगी। पर उसकी जीभ मेरी चूत में लण्ड की तरह घुस गई। मेरे मुख से आह निकल पड़ी। वो मेरी झांटे खींच खींच कर मेरी चूत पीने लगा। मैंने भूरा के बाल पकड़ कर हटाने की कोशिश की पर बहुत अधिक गुदगुदी के कारण मेरे मुख से चीख निकल गई।…
April 6th, 2011 at 6:01 pm
jo bhi ho jaldi kro
April 7th, 2011 at 8:57 am
Janeyman meh ready hun jab cho awaj dena meye mera lauda leke hazir hojaunga
April 21st, 2011 at 5:25 am
how to post story to you
April 22nd, 2011 at 9:15 am
Apki awaj bahot sexy he sunia plz koi aurat chudai chahe to mujhe raj00164@gmail.com par contact kare