मैं मडगाँव, गोआ स्टेशन पर उतरी। ‘जो’ लपक कर मेरी बोगी के आगे आ गया और मेरा सामान सामने वाले रेस्टोरेन्ट पर रख दिया। फिर वहां से लपक कर दूसरी बोगी में गया और वहां से एक जोड़े को और ले कर आ गया। मैं उन्हें जानती थी, विक्रम जो का पुराना मित्र है और लता विक्रम की पत्नी। जो ने बताया कि उन्हें भी मैंने गोआ घूमने के लिये बुला लिया था हम चारों स्टेशन से बाहर आ कर कार में बैठ गए। जो वहाँ से अपने घर ले गया। सुबह का समय था हमने चाय-नाश्ता किया। फिर घूमने का कार्यक्रम बनाया। गोआ अपने आप में कोई बड़ी जगह नहीं है। यहाँ से मात्र ३५ किलोमीटर दूर पंजिम है और यहाँ कुछ ही दूर पर वास्कोडिगामा है। चूँकि आज हमारे पास घूमने के अलावा कोई काम नहीं था, सो हमने पंजिम घूमने का कार्यक्रम बना लिया। जो ने वहाँ पर किसी को फ़ोन किया और रवाना हो गये। दिन के ११ बज रहे थे हम लोग बीच पर पहुँच गए थे। समुद्र का किनारा बहुत ही सुहाना लग रहा था… लहरें बार-बार किनारे से टकरा कर लौट रहीं थीं। हम सभी लगभग १२ बजे तक वहाँ रहे तभी जो को एक आदमी ने कुछ कहा और लौट गया।..