अगली सुबह मुझे बहुत ग्लानि और शर्मिन्दगी महसूस हो रही थी कि मैं अपनी बहन के साथ ही मस्ती कर रहा था। रह रह कर मुझे उसकी मस्त चूचियों की चुसाई भी याद आती। तभी सुमन मेरे पास आई तो मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था। सुमन मेरे पास बैठ गई। मैं उठ कर जाने लगा तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और बैठने के लिए कहा। मैं चुपचाप किसी चोर के तरह सिर झुका कर बैठ गया। अचानक वो हुआ कि मैं सोच भी नहीं सकता था सुमन मेरे नजदीक आई और मेरे होठों पर होंठ रख दिए। कहाँ तो मैं शर्म से मरा जा रहा था पर अचानक हुए यह हमला मेरी शर्म पर भारी पड़ गया और मैं भी सुमन के होंठ चूसने लगा। कोई पांच मिनट एक दूसरे के होंठ चूसने के बाद सुमन मुझ से दूर हुई और बोली- राज तुम्हें किसी बात पर शर्मिंदा होने की कोई जरूरत नहीं है। मैं खुद यही चाहती थी।…
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