मैं आधी कुंवारी थी। एक तीखी टीस मेरी टांगों के बीच उठ रही थी। अब तो वो जब भी घर खाना-वाना लेने आता, मौका देख मेरे मम्मे दबाने लगता और चुचूक चुटकी से मसलने लगता। उस बात को महीना हो गया। मेरी छाती में एकदम से बदलाव आने लगा। काफी कसी-कसी सी रहने लगी। महीना बीत जाने के बाद भी उसने मुझे पूरा कभी नहीं चोदा। लेकिन उसके हाथों से मेरे मम्मे बड़े हो गए मुझे ब्रा पहनना शुरू करना पड़ा, उधर मेरा बदन भर गया और अब इधर मेरे ख्यालों में बदलाव आने लगे। लौड़ा तो मैं कब से पकड़ती-सहलाती आ रही थी, चूस भी रही थी। मगर चुदवाने का मौक़ा नहीं मिल पाया था अभी तक। एक दिन मैं घर पर अकेली थी। कालू खाना लेने आया। उसे नहीं मालूम था कि मैं अंदर अकेली हूँ। लेकिन मैं तो उसका इंतजार कर रही थी। जानबूझ कर खाना देने नहीं गई क्योंकि मैं चाहती थी के वो आये…….. जब कालू खाना लेने आया तब उसे यह नहीं मालूम था कि मैं अन्दर अकेली उसका उन्ताजार कर रही हूँ। मैं चाहती थी कि वो आये और आज मुझे औरत बनने का सुख दे। मेरे मन में आज कुछ अजीब सी उथल पुथल चल रही थी। कालू जैसे ही घर के दरवाजे पर पहुंचा, उसने हमेशा की तरह मेरी कलाई पकड़ ली। मैंने अपने दूसरे हाथ से उसकी बांह पकड़ कर उसको अन्दर खींच लिया और कहा- आ भी जा मेरे कालू….आज घर पर कोई नहीं है। आज तो मैं अपने कालू को अपने हाथों से खाना खिलाऊँगी। इतना कह कर मैं उससे लिपट गई और वोह मुझे चूमने लगा।……
Part: 2
You must be logged in to post a comment.
October 18th, 2011 at 12:49 pm
gudiya 7 inch ka lena hai .good storay