शादी के बाद से नज़मा भाभी की चुदाई बहुत ही कम हुई थी। जवान तन लण्ड का प्यासा था। मुझे रोज चुदते देख कर उसका मन भी मचल उठा। वो रोज छुप छुप कर अब्दुल से मेरी चुदाई देखा करती थी। जब वो गाण्ड मारता था तो भाभी का दिल हलक में अटक जाता था। भैया को बस धंधे से मतलब था। रात को दारू पीता और थकान के मारे जल्दी सो जाता था। सात दिन पहले वो मुम्बई चला गया था। नज़मा भाभी आज तो ठान रखी थी कि मुझसे बात करके कुछ काम तो फ़िट कर ही लेगी। भाभी ने मेरा हाथ पकड़ा और कहा,”बानो छत पर चल, एक जरूरी काम है !”यहीं बोल दे ना … !” “अब तू भी गाण्ड फ़ुला कर नखरे दिखा ! … कहा ना जरूरी काम है !” चूतिया टाईप बातें मत कर … गाण्ड जैसा अपना मुँह खोल … बोल क्या बात है !”..
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