प्यारे दोस्तो, आज मैं आपको पहली बार गाण्ड के अलावा कोई नया किस्सा सुना रहा हूँ। बात २००६ की है मैं कानपुर में ही रहता और नौकरी करता था। मैंने गोविन्द नगर में एक फ्लैट किराये पर लिया था जिसमें आगे की तरफ माकन मालिक और पीछे के रास्ते से मेरा फ्लैट था जो कि दो कमरों का अच्छा सेट था। मैं कब आऊँ, कब जाऊँ किसी को कोई मतलब नहीं था। पीछे के दरवाज़े की एक चाभी भी मेरे पास रहती थी। कभी कभी मकान मालिक का बेटा ही उस तरफ आता था जो मुझसे काफी बड़ा था। या कभी मकान मालिक अपने पोतों के साथ आते थे।
इस मकान को लेने के बाद मुझे ऐसा लगा कि गलती कर दी क्यूंकि कोई भी माल नज़र नहीं आ रहा था। कुछ एक जो थे वो काफी दूर रहते थे और कोई जुगाड़ बन नहीं रहा था। करीब डेढ़ महीने बाद एक भाभी जी करीब ३० साल की होगी, सामने के मकान में आई। उनके परिवार में ३ बच्चे और उनके पतिदेव थे। बच्चे भी ठीक ठीक उम्र के थे एक लड़की करीब १० साल की, एक लड़का ६ साल का और एक ३ साल का।
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