दशहरे की छुट्टियाँ मैं मौसी जी के यहाँ रह कर बिता रहा था। मौसा जी तो काम पर चले जाते थे, घर पर मैं और मौसी जी अकेले ही रहते थे। मेरी मौसी बहुत खूबसूरत और चुलबुली हैं, मैं अक्सर उनके बड़े-बड़े स्तनों पर नजरें गड़ा कर रह जाता था। कभी-कभी मौसी जी तिरछी नज़रों से देख कर मुस्कुरा कर मुँह फेर लेती थी। उस दिन मौसी बाथरूम से नहा कर बाहर निकली तो सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज़ में थी, मैं उनको देख कर खड़ा का खड़ा रह गया- गहरे गले के ब्लाउज से उनके चूचे बाहर निकले पड़ रहे थे, भीगे ब्लाउज में चूचियों की नोकें साफ नजर आ रही थी, चूचियों के ऊपर के काले-काले गोल घेरे देख कर मेरा दिमाग चकरा गया। तंग पेटीकोट में बड़े-बड़े चूतड़ समां नहीं रहे थे। मैं बिल्कुल हक्का-बक्का हो कर खड़ा का खड़ा रह गया। मुझे इस तरह देखते हुए देख कर मौसी हंस कर बोली- मुन्ना ऐसे क्या क्या देख रहे हो? इससे पहले क्या कभी औरत नहीं देखी? आपकी खूबसूरती देख रहा हूँ मौसी ! सच बताऊँ, मैंने इतना सुन्दर शरीर आज तक नहीं देखा है ! मेरे तो होश उड़ गए ! और दिमाग चकरा गया ! मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि क्या कहूँ ?या क्या करूँ?..
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