आज मैं आपको एक अपनी ही जिंदगी की सच्ची घटना सुनाता हूँ। बात उन दिनों की है जब मेरे छमाही इम्तिहान चल रहे थे, सॉरी मैं आपको अपने बारे में बताना भूल गया कि मैं बी.ई. इंदौर का छात्र हूँ। जब मेरी परिक्षाएँ चल रही थी तब मेरा दोस्त और मैं साथ में पढ़ा करते थे। तब अचानक बातों ही बातों में मैंने कहा- यार, कोई लड़की का नंबर हो तो दे समय बिताने के लिए ! तो वो मुझसे बोला- है तो एक नंबर ! मगर तू बात कैसे करेगा? मैंने कहा- तू दे तो ! मैं कर लूँगा ! मैंने उस लड़की को एक गलत नाम से फ़ोन लगाया और फ़ोन पर उसकी बहुत तारीफ की। मैंने उसे देखा नहीं था कभी लेकिन फिर भी कल्पना से ही उसकी तारीफ की। उसे अच्छा लगने लगा। वो शायद मुझसे प्रभावित हो गई थी। अगर मैं फ़ोन काट देता था तो वो खुद फ़ोन लगा लेती थी। शायद उसे भी कोई चाहिए था।..