ट्रेन अपनी गति पकड़ चुकी थी। मैं खिड़की के पास बैठा हुआ बाहर के सीन देख रहा था। इतने मे कम्पार्ट्मेन्ट मे एक सुन्दर सी लड़की अन्दर आयी। मैने उसे देखा तो चौंक गया। सामने आ कर वो बैठ गयी। मैं उसे एकटक देखता रह गया। तभी मेरा दिमाग ठनका। और वो मुझे जानी पहचानी सी लगी। मैने उसे थोड़ा झिझकते हुए कहा,” क्या आप रेखा डिकोस्टा हैं…” “ह… आ… हां… आप मुझे जानते हैं……?” “आप पन्जिम में मेरे साथ पढ़ती थी … पांच साल पहले…” “अरे… तुम जो हो क्या……” “थैंक्स गोड…… पहचान लिया… वर्ना कह्ती… फिर कोई मजनूं मिल गया…” “जो…तुम वैसे कि वैसे ही हो…मजाक करने की आदत गई नहीं… कहां जा रहे हो…?” “मडगांव …… फिर पन्जिम..मेरा घर वहीं तो है ना…”
You must be logged in to post a comment.