आप यकीन करें या न करें ये मेरे जीवन के सच्ची कहानी है! मेरे पापा बहुत ही स्वार्थी हैं और हम तीन बहिने और एक भाई हैं। रिटायर होने के बाद वो हमारे दो कमरों के मकान के एक कमरे में ख़ुद रहने लगे और अपना सारा पैसा एक बक्से में चार चार ताले लगा के रखते थे यहाँ तक के मम्मी को घर घर जाकर काम करके खर्चा चलाना पड़ता था। मैं बहुत चुस्त थी, मासूम थी खेल कूद में तेज थी. नागपुर में हुई हाफ़ मेराथन में मैंने भाग लिया और ४२वें स्थान पर रही, लड़कियों में १०वें स्थान पर रही। इसी वजह से मुझे जवाहर नवोदय विद्यालय में शारीरिक शिक्षा की अध्यापिका की नौकरी मिल गई। मेरी पोस्टिंग मणिपुर में हुई। उसके एक-डेढ़ साल के बाद मुझे केंद्रीय विद्यालय से शारीरिक शिक्षा की अध्यापिका की नौकरी का प्रस्ताव मिला और पोस्टिंग मिली उदयपुर, राजस्थान। मेरी खुशी की कोई सीमा नहीं थी। मैंने सोचा था कि अब पहले अपनी छोटो बहिन की शादी करूंगी, फ़िर भाई बहिन को पढ़ाते हुए कोई अच्छा सा लड़का मिल गया तो शादी कर लूंगी। मेरे ही स्कूल के प्राईमरी विभाग में एक अध्यापिका थी, उसका लड़का अतुल शादी शुदा था और दो बच्चों का बाप भी। लेकिन किसी प्राइवेट स्कूल में पार्ट टाइम नौकरी करता था। मैंने भावुकता में अपनी कहानी उस अध्यापिका को बता दी थी मुझे मालूम नहीं था कि वो उसका फायदा उठाने के लिए अपनी लड़के को मेरे पीछे लगा चुकी थी। धीरे धीरे अतुल ने मुझसे दोस्ती करनी शुरू कर दी। वो मेरे घर आता था और बाज़ार से अच्छी अच्छी चीजें लाता था खाने की।..
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